नैतिक कहानी: मैं किसान का बेटा हूं, वह पीएम का
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इंग्लैंड के प्रधानमंत्री ग्लैडस्टन एक किसान के पुत्र थे । वह अत्यंत सादा जीवन व्यतीत करते थे । वह अपने कपड़े भी खुद ही साफ करते थे । एक बार वे रेल में सफर कर रहे थे । एक स्टेशन पर एक अखबार का संपादक उनसे मिलने आया । उसका ख्याल था कि प्रधानमंत्री अवश्य ही प्रथम श्रेणी के डब्बे में होंगे । इसलिए उसने प्रथम श्रेणी के तीन डिब्बों में उनकी खोज की, पर वे नहीं मिले । तभी प्रथम श्रेणी की एक खिड़की पर उन्हें बेशकीमती पोशाक पहने एक युवक दिखा । उस संपादक ने नवयुवक से प्रधानमंत्री के बारे में पूछा, तो उसने बताया, ‘वह इस डब्बे में नहीं, द्वतीय श्रेणी के डब्बे में हैं ।’ जब संपादक को विश्वास नहीं हुआ, तो उस युवक ने कहा, ‘मैं उनका पुत्र हूं ।’ इस पर संपादक दूसरी श्रेणी के डब्बे में गए, तो देखा की ग्लैडस्टन बैठे अखबार पढ़ रहे थे । यह देख संपादक ने उनसे पूछा, ‘श्रीमान, आप प्रधानमंत्री होकर द्वितीय श्रेणी के डब्बे में सफर कर रहे हैं । पर आप का पुत्र प्रथम श्रेणी के डब्बे में सफर कर रहा है । ऐसा क्यों?’ इस पर ग्लैडस्टन ने मुस्कुराकर कहा, ‘भाई मैं एक किसान का बेटा हूं, जबकि वह एक प्रधानमंत्री का बेटा है ।’
नैतिक कहानी: तेरा मेरा नहीं, महत्व सबका
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किसी स्थान पर भवन का निर्माण कार्य चल रहा था । निर्माण स्थल के समीप ही ईंटों का ढेर जमा था । जमीन पर पड़े ईंटों ने कहा, ‘गगनचुंबी अट्टालिकाओं का निर्माण हमारे अस्तित्व पर ही निर्भर है । भवन जब बनकर तैयार हो जाएगा, निस्संदेह उसके निर्माण का पूर्ण श्रेय हमें ही प्राप्त होगा ।’
मिट्टी-गारा, ईंटों की गर्व भरी बातों को सुनकर स्वयं को रोक नहीं पाए । फिर वे ईंट से बोले, ‘तुम सरासर झूठ बोलती हो । क्या तुम्हें ज्ञान नहीं कि एक सूत्र में पिरो कर ईंट से ईंट जोड़कर कर इस भवन को सुदृढ़ बनाने का श्रेय तो हमें ही है । हमारे अभाव में तो तुम्हारे ढेर किसी भी काम के नहीं होंगे । उन्हें एक ठोकर मार कर ही गिरा दिया जा सकता है । तो सोचो तुम्हारे अकेले होने से भवन का क्या अस्तित्व है । जब तक की मैं तुमसे ना जुड़ जाऊं ।’ निर्माणाधीन भवन इन दोनों की बातें सुन रहा था । उससे भी रहा नहीं गया । इसके आगे भवन ने जो कुछ उनसे कहा वह एक स्वीकार्य सत्य था । भवन बोला, ‘सब का महत्व है, परंतु इससे भी महत्वपूर्ण है, सह-अस्तित्व । सह-अस्तित्व के अभाव में किसी का व्यक्तिगत कोई महत्व नहीं है । सभी अधूरे तथा निहायत ही कमजोर है । इसलिए आप सभी को अपना झूठा दंभ त्याग कर सहयोग का महत्व समझना व स्वीकारना चाहिए, क्योंकि इसी में हम सबकी भलाई है । परस्पर मिलकर काम करने से ही विकास होता है ।
नैतिक कहानी: आज का एकलव्य
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‘बेटा.. गुरु जी आए हैं, उनकी आज्ञा मानना तुम्हारा धर्म है ।’ ‘हां…, मम्मी मैंने हमेशा गुरु जी की आज्ञा मानी है ।’ ‘जानते हो, आज तुम जो कुछ भी हो, उन्ही की वजह से हो ।’ ‘हां… मम्मी मैं जानता हूं कि जिस गौरव, सम्मान और यश को मैंने हासिल किया है, उसका सारा श्रेय गुरु जी को ही जाता है । इन्हीं के नुक्कड़ नाटक में काम करते हुए डायरेक्टर सुशील कुमार ने मुझे देखा और मुझे अपनी फिल्म के लिए सिलेक्ट किया था । मैं आज सुपर स्टार, सुपर हीरो गुरु जी के ही कारण बना हूं ।’
‘तब तो बेटा, तुम्हें गुरु जी वाला वह नाटक जरूर कर लेना चाहिए ।’
कुछ पल गौरव शांत रहा, फिर हाथ जोड़कर क्षमा मांगते हुए बोला, ‘गुरु जी मुझे क्षमा कीजिए । इस समय मैंने दुनिया में सुपर स्टार, सुपर हीरो के रूप में जो प्रसिद्धि, नाम, यश, गौरव और सम्मान हासिल किया है, उसी में एक ऐसी महिला के लिए नहीं गांव सकता, जिसका बलात्कार नेता और सरकारी अफसरों ने किया हो…। मैं सरकार विरोधी यह नाटक कभी नहीं करना चाहूंगा । मैं एक एकलव्य नहीं हूं कि गुरु की प्रतिष्ठा के लिए अपने सम्मान को त्याग दूं ।’ कहकर गौरव ड्राइंग रूम से बाहर चला गया ।
गौरव के जाने के बाद कुछ क्षण चुप्पी छाई रही । फिर गुरुजी मां से बोले, ‘बहन यह तो आज का एकलव्य है, जो गुरु दक्षिणा देगा नहीं, बल्कि लेगा..।’
गुरुजी भी नए एक्टर की तलाश में चल दिए ।